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Bike जितनी कीमत में लॉन्च हुई TATA Nano का न्यू मॉडल टॉप फीचर्स वाली कार, देखें कीमत और परफॉर्मेंस

TATA Nano Car: जब TATA Nano इंडिया में पहली बार आई थी, तो हर तरफ एक ही बात हो रही थी – “1 लाख की कार आ गई!”। सच कहें तो उस टाइम पर ये खबर किसी धमाके से कम नहीं थी। इंडिया जैसे देश में, जहाँ ज़्यादातर लोग बाइक या स्कूटर पर सफर करते थे और कार को सिर्फ अमीरों की चीज़ समझा जाता था, वहां नैनो ने आम आदमी का कार वाला सपना हकीकत में बदल दिया।

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डिजाइन और लुक

अब बात करें नैनो के लुक्स की तो ये कार दिखने में क्यूट सी लगती थी। एकदम कॉम्पैक्ट, गोल-मटोल और शहरी ट्रैफिक के लिए एकदम मस्त। लंबाई सिर्फ 3.1 मीटर थी यानी इसे पार्क करने के लिए बहुत ज्यादा जगह की ज़रूरत नहीं थी। ट्रैफिक में फँसी कारों के बीच से निकलने में ये बड़ी गाड़ियों से कहीं आगे थी।

हाँ, इसका बॉडी स्ट्रक्चर थोड़ा हल्का था और प्लास्टिक का इस्तेमाल ज्यादा हुआ था, जिससे इसकी बिल्ड क्वालिटी थोड़ी कमजोर मानी जाती थी। लेकिन जो प्राइस में ये आ रही थी, उसके हिसाब से बहुत कुछ मिल रहा था।

अंदर का माहौल 

TATA नैनो का इंटीरियर बहुत ही सिंपल था। इसमें आपको ना पावर स्टीयरिंग, ना एसी, ना एयरबैग, और ना ही कोई हाई-फाई फीचर मिलता था – खासकर बेस मॉडल में। लेकिन इतना जरूर था कि 4 लोग इसमें आसानी से बैठ सकते थे। सीट्स पर ज्यादा कंफर्ट नहीं था, लेकिन शहर में घूमने के लिए काम चल जाता था।

बाद में जो इसके टॉप वेरिएंट्स आए उनमें AC और कुछ और छोटे-मोटे अपग्रेड्स मिल गए थे, जिससे थोड़ा कंफर्ट बढ़ गया था।

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परफॉर्मेंस 

TATA Nano में जो इंजन दिया गया था, वो था 624cc का 2-सिलेंडर वाला छोटा इंजन। ये इंजन 37 bhp की पावर देता था और 51 Nm का टॉर्क निकालता था। अब ये आंकड़े सुनकर तो लग सकता है कि गाड़ी बहुत स्लो होगी, लेकिन सच्चाई ये है कि शहर में चलाने के लिए ये इंजन काफी था।

छोटे-छोटे रास्तों, ट्रैफिक वाली गलियों और भीड़भाड़ में नैनो एकदम आसानी से चल जाती थी। हैंडलिंग हल्की थी, जिससे नये ड्राइवर्स को भी चलाने में मज़ा आता था।

हाँ, अगर आप इसे हाईवे पर ले जाएँ, तो वहां पर इसकी कमज़ोरियाँ सामने आने लगती थीं। 60-70 kmph तक तो ठीक-ठाक चलती थी, लेकिन इसके बाद स्पीड बढ़ाने पर इंजन बहुत शोर करता था और स्टेबल महसूस नहीं होती थी। यानी लंबी दूरी और हाइवे ट्रिप के लिए ये गाड़ी नहीं बनी थी।

माइलेज 

TATA Nano की सबसे बड़ी ताकत थी इसका माइलेज। एक टाइम ऐसा था जब पेट्रोल के दाम बढ़ते ही जा रहे थे और लोग ज्यादा माइलेज वाली गाड़ी ढूंढ रहे थे। ऐसे में नैनो 21-25 kmpl तक का माइलेज देती थी, जो उस समय के लिए जबरदस्त था।

इसका फ्यूल टैंक 24 लीटर का था, मतलब अगर आपने फुल टैंक कराया तो आराम से 500 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकते थे बिना पेट्रोल पंप की चिंता किए।

कम्फर्ट और जगह 

अब अगर आप उम्मीद कर रहे हैं कि नैनो में बैठते ही सोफा जैसा आराम मिलेगा तो थोड़ा रुक जाइए। इसमें स्पेस लिमिटेड था, खासकर पीछे की सीटों पर। दो पतले लोग तो बैठ सकते थे, लेकिन अगर पीछे दो भारी लोग बैठ जाएं तो थोड़ी तंगी महसूस होती थी।

सस्पेंशन भी उतना अच्छा नहीं था, जिससे खराब रास्तों और गड्ढों में झटके ज्यादा महसूस होते थे। और जहां तक बूट स्पेस की बात है, तो बस एक छोटा बैग ही रख सकते थे – लंबा ट्रिप प्लान करने का सवाल ही नहीं था।

कीमत और वैरिएंट 

TATA Nano जब लॉन्च हुई थी, तो इसकी कीमत सिर्फ ₹1 लाख रखी गई थी। हालांकि ये कीमत बेस मॉडल की थी और जैसे-जैसे वेरिएंट ऊपर जाते गए, प्राइस भी बढ़ती गई। आखिर में इसकी कीमत ₹2.05 लाख तक पहुँच गई थी।

कुछ वेरिएंट्स में एसी और थोड़ा बेहतर इंटीरियर मिल जाता था, लेकिन जैसे ही ये कार थोड़ी महंगी हुई, लोगों ने सोचना शुरू कर दिया कि “भाई, अगर इतना पैसा लगाना है, तो क्यों ना मारुति अल्टो या हुंडई ईऑन ले लें?” और वहीं से नैनो की मुश्किलें शुरू हो गईं।

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क्यों फेल हुई नैनो?

अब सवाल आता है कि इतनी सस्ती और यूनीक कार फेल क्यों हो गई? तो इसके पीछे कई कारण थे।

सबसे पहले तो सेफ्टी फीचर्स की बहुत कमी थी – ना एयरबैग, ना ABS। ऊपर से इसका “गरीबों की कार” वाला टैग भी लोगों को खटकता था। लोग इसे लेकर थोड़ा शर्म महसूस करते थे, जबकि कार खरीदना खुद में गर्व की बात होनी चाहिए।

दूसरी बात, इसकी पावर बहुत कम थी। जब इसमें 4 लोग बैठते थे और एसी ऑन होता था, तो गाड़ी दम तोड़ती सी लगती थी।

तीसरी बात, बेसिक फीचर्स की भारी कमी। आज के जमाने में AC और पावर स्टीयरिंग तो ज़रूरी हो गए हैं, लेकिन नैनो इन सबसे दूर थी।

आखिर बात

TATA Nano को अगर सिर्फ कीमत के नज़रिए से देखें, तो ये एक क्रांतिकारी कदम था। पहली बार किसी कंपनी ने आम आदमी को ध्यान में रखकर कार बनाई थी। टाटा मोटर्स का विज़न बहुत क्लियर था – “हर घर एक कार”। और उन्होंने ये सपना सच करने की कोशिश भी की।

लेकिन बदलते वक्त के साथ लोगों की उम्मीदें और ज़रूरतें भी बढ़ती गईं, और नैनो उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। इसलिए धीरे-धीरे इसकी सेल्स कम होती गईं और आखिरकार प्रोडक्शन बंद करना पड़ा।

फिर भी, TATA Nano इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी – एक ऐसी कार जो करोड़ों भारतीयों के दिल के बेहद करीब थी। ये सिर्फ गाड़ी नहीं थी, ये एक सपना थी… जो थोड़े वक्त के लिए ही सही, लेकिन पूरा जरूर हुआ।

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